बुधवार, 29 मार्च 2017

सुखडेहरी ग्रामः


गंगोत्तरवर  क्षेत्र  मनोहर  भाशित  कृष्णमृदाक्षेत्रम् |
गाजीपुर मण्डलेसु - शोभित सुखडेहरी एकः ग्रामम् ||

प्राचिर्प्रवहतु    विद्यागीता   प्राथमिक   विद्यालय |
वेदनिनादं घण्ट - घण्टिका बाजति नित्य शिवालय ||
शस्यसमृद्धम्  क्षेत्रं  यश्च  कृषकजनानां   आनंदम् |
गायतिगीतामृतरव - वाणी  वसंतोत्सवम्  फागम् ||
गंगांचल वर क्षेत्र मनोहर भाशित सुखडेहरी ग्रामम् ||१||

रंगगुलालमबीर  विलेपित जनः  नदन्ति  ललामम् |
झांझ - मृदंग बजावत - गावत होली गीत निकामम् ||
कुर्वन्ति  कोलाहल बालः  सर्वे पदान्तस्य  प्रकामम् |
सम्प्रति सर्वसमिल्यं गीतम् गायन्ति ठाकुर धामम् ||
करईलेषु वर पावन क्षेत्रं भाशित सुखडेहरी ग्रामम् ||२||

पल्लव - लसिता निबिड़ - बनाली रुचिरं नव - परिधानम् |
विमल सलीलं सरसिज विकसति वापि - कुण्ड - तड़ागम् ||
पूर्वोत्तरवर   काली   मन्दिर   अत्र   सरोवर   तीरम् |
उपवन  यत्र  मनोहर  नामधेयेषु  'खुसबगीया'  बागम् ||
करईलेषु  वर पावन क्षेत्रं  भासित सुखडेहरी ग्रामम् ||३||

ग्रामात् मध्ये दुर्गामन्दिर  दक्षिण्यं च हनुमतलालः |
पश्चिमेसु  पुनः  शिवालयमेकं  स्वग्रामाय नमामः ||
    उत्तरस्यां यस्य देवतात्मा
              तरकुलवा बाबाऽति नामम् |
  रविरश्मिवत् भारतभूमि भुशित,
              वन्दे वयं नित्यमं मातृभूमिम् |

         ~ रवि शंकर मिश्र .


    भगवती भारती की कृपा से कुछ  पंक्तियां  लिख गयीं, जिन्हें मै सविनय समस्त ग्रामवासियों को समर्पित करता हूँ |  यह कविता सन 2015 में होली के दिन रची गई अतः होली के  वसंतकालीन  समय का मनोरम वर्णन प्रस्तुत करती है |  पल्लव - लसिता निबिड़ - बनाली  हमारे  बचपन के दिनों की मधुर स्मृति है |  यह अत्यंत खेद का विषय है कि, वर्तमान में यह निबिड़ बनाली निःशेष होती जा रही है |  आशा है कि यह ग्राम्य गीतम्  ग्रामवासियों को अच्छा लगेगा |
    करईलेषु  वर पावन क्षेत्रं  भासित सुखडेहरी ग्रामम् ||
      करईल की प्यारी धरती पर एक सुखडेहरी गाँव है |
( इस पंक्ति के लिए मै कनिष्ट पितृव्य श्री दीपक कुमार मिश्र का आभारी हूँ |



   

शनिवार, 18 मार्च 2017

वसंतोत्सव : प्रेम अगिनी एवं सम्मत


     ‘प्रेम अगिनी’ में उदाशीनता के कारण अब ‘सम्मत’ विलुप्त होने के कगार पर है | धीरे - धीरे पुरानी पीढ़ी गुजरती जा रही है और नयी पीढ़ी को इस प्रेम अगिनी में किंचित भी रूचि नहीं है | आधुनिकता के दौड़ ने तो मनुष्य का परम्परागत ज्ञान व पारम्परिक सम्बंधो से ऐसा विच्छेदन कर दिया है कि, यह प्रेम अगिनी धुँधुआने सी लगी है | गाँव के बड़े-बुजुर्ग प्रेम अगिनी धधकाने की कला नवहों  को सीखना चाहते है ; और नवहे इसे स्मॉर्टफोन मे रिकॉर्ड करने और सेल्फियाने में लगे हैं | अब वह दिन दूर नहीं जब ये फाग, रिमिक्स होकर डी.जे. पर बजेंगे |
     आइये अब लोक गायन के  इस धुँधुआते ध्वनि का आनन्द लेते हैं |

  1.   लोभी हो नयना
               केकरा  सगे  खेलब  फाग |
               केकरा सगे   खेलबी फाग ||
  एह पार की लाकड़ी हो
              ओह पार  की आग ; ललना ...
              ओह पार  की  आग |
  प्रेम अगिनी धधकाई के हो
     प्रेम अगिनि धधकाई के हो ,
               सम्मत देहू जराय ; ललना ...
 लोभी हो नयना ....
              केकरा सगे खेलबी , फाग ?

   हा हा ...
    चोलिया हमरो धूमिल भई हो
       चोलिया हमरो धूमिल भइ हो |
                गोपी को ललचाय ; ललना ...
                केकरा सगे खेलब फाग ?
  कैसो  निठुर  मनमोहना हो !
    कैसो  निठुर  मनमोहना हो !
               मोही रहे टरकाय; ललना…

  लोभी हो नयना  
             केकरा सगें खेलबी; फाग ?

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     होलिका जरी जाय, होलिका जरी जाय
                          रहली  कंस  के  फूआ  |
     होलिका जरी जाय, होलिका जरी जाय
                          रहली  कंस  के  फूआ  |

     गोकुला में हरि होलिका के मरल
     गोकुला में हरि होलिका के मरल |
                          घर घर पाकल पूआ
                   अरे, घर घर पाकल पूआ ; हरि !
                       रहली  कंस  के  फूआ  |
      होलिका जरी जाय, होलिका जरी जाय
                          रहली  कंस  के  फूआ  |

      
      करईल की प्यारी धरती पर एक सुखडेहरी गाँव है ; जो अपनी संस्कृति के समन्वयन-संरक्षण हेतु इस आधुनिक युग में भी संघर्षरत है |