बुधवार, 12 जनवरी 2022

उठो, जागो और आगे बढ़ो …


   “उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए।” 

                                             - स्वामी विवेकानन्द 


       

          प्रिय दैनन्दिनी 

                     आज प्रातः काल स्नान करते समय से ही मन नाना प्रकार के भावों के उदधि आंदोलित तरंगों से प्लावित हो रहा हैं। सोच रहा हूँ कि एकबार पुनः समस्त शक्ति को पुन्जीभूत करके जगत आरण्य मे नवीन पथ के अनुसंधान मे चल पडूँ। मोबाइल में दुनियादारी की खबरों को देखते हुए और स्वामी विवेकानंद जी की रचनाओं को पढ़ते हुए आज एक महत्वपूर्ण निर्णय किया। इस वर्ष के अमृत महोत्सव के साथ ही मैं अपनी एक अधूरी रचना ‛मेघदूतम्’ को भी पूर्ण करूँ। यह नाट्य पिछले पाँच साल से अधूरा पड़ा हुआ हैं। 

        दैनिके! इन दिनों कई सालों से परिस्थितियां बिल्कुल विपरीत हैं। कोई भी प्रयास सफल होता नहीं दिखता। आज दोपहर दो बजे से NBT द्वारा युवा दिवस पर एक वर्चुअल मीटिंग भी होने वाला हैं। चुकि Yuva mentorship Scheme में मेरे आवेदन को अस्वीकृत कर दिया गया है फिर भी मैं जहाँ तक सम्भव हैं इस ग्रुप से सम्पर्क में रहकर बहुत कुछ जानना समझना चाहता हूँ। इन दिनों भारतीय उपमहाद्वीप में कोरोना का नया वैरिएंट ओमिक्रोन अत्यंत तीव्रता से जन जीवन को संक्रमित कर रहा हैं। सम्भवतः इस बार भी लॉकडाउन की स्थिति बन जाये। पिछले कुछ दिनों से NCERT के अपठित पुस्तकों का अवलोकन कर रहा हूँ। कोई निश्चित सोच तो नहीं है, बस ऐसे ही सोचता हूं कि स्कूली जीवन मे जो पुस्तकें पढ़ने से वंचित रहा; (बात यह है कि 11वी में विषय समूहन हो जाने के कारण हमलोग बहुत सी उपयोगी पुस्तकें नहीं पढ़ पाते हैं।) एक बार उनको भी देख ही लूँ। अभी इन दिनों ‛भारतीय हस्तकलाओं की खोज’ नामक पुस्तक पढ़ रहा हूँ। विज्ञान के विद्यार्थी के लिए मानविकी की पुस्तकें किसी अजूबे से कम नहीं हैं। फिर भी निठल्ला आदमी करेगा क्या?! और समय तो इतना खराब चल रहा हैं कि बस पूछो मत। लगता है कि राहु केतु हाथ धोकर पीछे ही पड़ गए हैं। कुछ भी कर लीजिए पर कुछ भी ठंग का होने जाने वाला नहीं। दैनिके! जानती हो आज पता नहीं मन मे क्या विचार आया कि मैं स्वामी विवेकानंद जी का कुंडली लेकर बैठ गया! कुछ देर तक माथापच्ची किया पर मेरे जैसे नवसिखुआ को कुछ नहीं समझ आया। वैसे भी फलित मुझे थोड़ा बेतुका लगता हैं, पता नहीं क्यो?! पर मैं यह भी नही कह सकता हूँ कि फलित वाकई में बेतुका हैं। कुछ होगा, पर सायद मुझे नहीं समझ आ रहा। खैर अपनी बात करते हैं! दैनिके! इतना तो निश्चित हैं कि अपना दिन दशा ठीक नहीं चल रहा । अपना तो वही राहु की सरकार चल रही हैं, बुद्धयाविहीनमतिविभ्रमसर्वशून्यं ...।