बुधवार, 17 अगस्त 2022

नन्दगंज गाज़ीपुर में अगस्त क्रान्ति 1942




           अगस्त क्रान्ति 1942; स्वतंत्रता संग्राम के इस महायज्ञ में गाजीपुर जनपद, नन्दगंज थाना क्षेत्र की जनता ने सबसे बड़ी आहुति समर्पित की। यहाँ की जनता को स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु बड़ा गहरा मुल्य चुकाना पड़ा। सन 42 की अगस्त क्रांति को याद कर, यहाँ के बड़े-बुजुर्गों की आँखें नम हो जाती हैं। कलेजा काँप जाता हैं। आज़ादी की इस लड़ाई की याद आते ही बूढ़ी आँखों के सामने शहीदों की कुर्बानियों का वह मंजर नाच उठता हैं; ‛जब गोलियों की बौछारों के बीच, क्रांतिकारियों ने लूट ली थी मालगाड़ी।’ … बड़े - बूढ़ों की काँपती आवाज में उस स्याह दिन की घटना को सुनना, श्रोताओं के लिए किसी सजा से कम नहीं। ब्रिटिश प्रशासन की अमानवीयता पूर्वक क्रांतिकारियों की नृशंस हत्या से यहाँ की धरती रक्तरंजित हो गयी थी। 

           जनांदोलन का नेतृत्व भंगकर इस क्रांति को विफल करने के लिए ब्रिटिश प्रशासन द्वारा सूबे में हर तरफ गिरफ्तारियां की जा रहीं थीं। फिर भी जनता के उत्साह का कोई अन्त न था। आंदोलन के ध्वजवाहक नेताओं के गिरफ्तार होते ही जनता स्वतः ही शीघ्रता से नया नेतृत्व सृजित कर लेती थी। अपने नेताओं के गिरफ्तार होते ही तीतर बितर हो चुकी जनता बड़े ही नाटकीय ढंग से, कुछ ही घण्टों ने पुनः संगठित हो जाती थी। लगभग हर गिरफ्तारी के बाद शाम को शांत पड़ चुके क्रांतिकारी, अगले दिन प्रभात की किरणों से अनुरंजित समुद्री लहरों की भांति पुनः आंदोलित हो उठते थे। निकटवर्ती क्षेत्रों से इंद्रदेव त्रिपाठी, दलश्रृंगार दूबे, तथा विश्वनाथ सिंह गौतम आदि कांग्रेस कार्यकर्ता विद्रोह के आरम्भ मे ही बंदी बना लिए गए थे। नन्दगंज मे क्रांतिकारियों द्वारा पुलिया तोड़कर रेलमार्ग अवरुद्ध करने के कारण ब्रिटिश अधिकारी अत्यधिक क्रोधित हो गए थे। प्रशासन आंदोलन के नए नेता हरप्रसाद सिंह को गिरफ्तार करने के लिए सक्रिय हो गया। अगले दिन हरप्रसाद सिंह को बंदी बनाकर पुलिस थाने पर ले गयी। उन्हें पुलिस ने निर्दयतापूर्वक पीटा। हरप्रसाद सिंह मार खाते खाते बेहोश हो गए और पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया। शाम तक जनता के दबाव में आकर पुलिस ने हरप्रसाद जी को जनता के साथ जाने दिया। ब्रिटिश पुलिस के टॉर्चर से अपने नेता की यह दुर्दशा देखकर जनता आगबबूला हो उठी। अगले दिन  14 अगस्त से, क्रोधित आंदोलनकारियों ने सरकारी अड्डों पर आक्रमण कर दिया। आंदोलनकारियों ने स्टेशन पर तिरंगा झंडा फहरा दिया और आवागमन के रास्ते को नष्ट कर दिया। 

              14 अगस्त को नन्दगंज स्टेशन पर विदेशी वस्त्रों और सेना के लिए खाद्यान्नों से लदी 52 डिब्बों की एक मालगाड़ी आ पहुँची। चुकि स्टेशन से तीन किलोमीटर पूर्व में रेलवे पुलिया को तोड़ दिए जाने के कारण मार्ग अवरुद्ध हो गया था अतः मालगाड़ी आगे न जा सकी। यह समाचार शीघ्र ही आस पड़ोस के गांवों में पहुंच गया। आंदोलनकारियों ने इस मालगाड़ी की सामग्री को लूटकर ब्रिटिश सरकार पर दबाव बनाने की योजना पर विचार किया। क्रांतिकारियों की मंसूबों की भनक प्रशासन को भी लग गयी थी। नन्दगंज थाने के कोतवाल ने जिला कलेक्टर ए एस मुनरो तक यह सूचना पहुंचा दी। रातों रात पुलिस सुपरिटेंडेंट मि. मेज के नेतृत्व में पुलिस बल की एक सशस्त्र टुकड़ी स्टेशन पर पहुच गयी। संगीनों से सुसज्जित पुलिसकर्मी गाड़ी के इर्दगिर्द पहरा देने लगे। 

              आंदोलन के नए नेता बाबू भोलानाथ सिंह और जाने माने क्षेत्रीय पहलवान रामधारी सिंह यादव के नेतृत्व में आगामी आंदोलन की रूप रेखा पर विचार किया जाने लगा। हर प्रसाद सिंह के आह्वान पर क्रांतिकारी एक बार फिर एकजुट होने लगे। प्रमुख क्रांतिकारी बाबू भोलानाथ सिंह, हर प्रसाद सिंह और पहलवान रामधारी सिंह यादव का मत था कि नन्दगंज स्टेशन पर खड़ी मालगाड़ी को लूटकर, ब्रिटिश सरकार पर दबाव बनाया जाना चाहिए। इस योजना को कार्यान्वित करने के लिए, बेलासी ग्राम निवासी डोमा लोहार और उनकी टीम को मालगाड़ी के फाटकों को खोलने की जिम्मेदारी सौंपी गयी। काफी विचार विमर्श के बाद क्रांतिकारियों के बीच मालगाड़ी मे लदे विदेशी वस्त्रों की होली जलाना और खाद्यान्न को जरूरतमंद लोगों में बाँटना प्रस्तावित हो गया। पुनश्च क्रांतिकारियों द्वारा मालगाड़ी लूटने की योजना को गुप्त रखते हुए; अगले दिन के आंदोलन में नन्दगंज थाने का घेराबंदी कर, थाना पर राष्ट्रध्वज तिरंगा फहराया जाने कि उद्घोषणा कर दिया गया। इस आंदोलन में अधिकाधिक लोगों को सम्मिलित होकर, थाने पर तिरंगा फहराने की सूचना शीघ्रता से पास पड़ोस के गांवों तक पहुँचा दिया गया। 


                 15 अगस्त 1942; क्रांतिकारियों ने नन्दगंज थाने पर कब्जा करने की योजना बनायी। तीन टोलियां तीन ओर से निकलीं। मैनपुर से श्यामनारायण, करण्डा से बधई सिंह और बलुआ से राम परिखा सिंह के नेतृत्व में सैकड़ों युवा क्रांतिकारी इस आंदोलन में सम्मिलित हुए। आंदोलन का जुलूस जैसे जैसे थाने की ओर बढ़ता गया, और अधिक संख्या में लोग इस झुंड में सम्मिलित होते गए। हाथों में झण्डा लिए और नारे लगाते हुए सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण लोग नन्दगंज की ओर चल पड़े। ‛भारत माता की जय!’ और ‛अंग्रेजों भारत छोड़ो।’ के गुंजयमान स्वरों से आकाश प्रतिध्वनित हो उठा। 

                  नन्दगंज के सशस्त्र आंदोलन को अमलीजामा पहनाने मे महत्वपूर्ण भूमिका जुनेद आलम की रही। उन्होंने अपने भाई मुस्ताक आलम और नैसाय के रामधारी पहलवान तथा पचदेवरा के विश्वनाथ यादव के साथ मिलकर थाने पर सशस्त्र विद्रोह की योजना बनाई। क्रांतिकारियों ने ग्राम कुरबान सराय मे शेख मुस्ताक आलम के आवास पर इस योजना के कार्यान्वयन हेतु आवश्यक रणनीति बनाई। लाठी डंडे और छोटे-बड़े हथियारों के दम पर पुलिस से दो-दो हाथ करने की योजना बनी। सामान्यतः हम देखते हैं कि अगस्त क्रांति के दौरान अधिकतर आंदोलन अहिंसात्मक थे और महात्मा गांधीजी के आदेशानुसार बड़े ही शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न किये गए थे। पुनश्च यह ध्यातव्य है कि, तब के कुछ लोग गाँधीजी से भिन्न विचार रखते थे। विशेषकर दूर दराज के ग्रामीण युवा अंग्रेजी सरकार का जोरदार तरीके से विरोध करना चाहते थे। इस कारण इन आंदोलनों में कुछ एक जगहों पर हिंसक टकराव भी हुए। नन्दगंज भी अपवाद नहीं यहाँ के गरम दल के विचारों वाले क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों से जमकर मुकाबला किया। 

                   मध्याह्न होने तक हज़ारों की संख्या में क्रांतिकारी तीन ओर से नन्दगंज पहुँच गये। और उधर प्रमुख क्रांतिकारी बाबू भोलानाथ सिंह, पहलवान रामधारी सिंह यादव, डोमा लोहार और हर प्रसाद सिंह के नेतृत्व में चौथा दल भी हुंकार कर उठा। “भारत माता की जय।”; “इंकलाब जिंदाबाद।” की नारों से वातावरण व्याप्त हो गया। आंदोलन की लहर थाने की ओर बढ़ चली। थाने पर पहुँचने पर पुलिस से मुठभेड़ हो गयी। इसमे परमेठ के बंधु सिंह शहीद हो गए। इससे क्रुद्ध क्रांतिकारियों ने थाने पर हमला बोल दिया। तत्कालीन थानाध्यक्ष विद्याशंकर पांडेय और पुलिस के स्टाफ थाना छोड़कर भाग खड़े हुए। क्रांतिकारियों ने थाने पर तिरंगा फहरा दिया और पुलिस की फाइलों में आग लगा दी। सभी लोग आजादी का जश्न मनाने लगे। मौके पर बरहपुर के बाबू भोलानाथ सिंह और पहलवान रामधारी सिंह यादव ने भीड़ को सम्बोधित करते हुए कहा की नन्दगंज स्टेशन पर 52 डिब्बों की उसे लूट लिया जाए और नन्दगंज स्टेशन पर भी तिरंगा फहरा दिया जाये। 

                   नन्दगंज थाने पर विजय प्राप्त कर उत्साह के उन्माद मे शोर मचाती भीड़ को सम्बोधित करते हुए बाबू भोलेनाथ सिंह ने कहा - “मेरे बहादुर मित्रों! यह परीक्षा की घड़ी हैं। यह आप सबके सहयोग और साहस का ही परिणाम है कि आज इस अंग्रेजी पुलिस के घर के ऊपर तिरंगा झंडा फहरा रहा हैं। सरकारी अफसर और उनकी पुलिस हमे आते देख भाग खड़ी हुई। भाइयों! रेलवे स्टेशन पर एक मालगाड़ी लगी हैं। जिसमे विदेशी वस्त्रों का जखीरा लदा हैं। और हमारे देश का आनाज फ़िरंगी सरकार परदेश भेज रही हैं। हम यह कदापि नहीं होने देंगे। हम सब स्टेशन पर चलेंगे। रेल के ऊपर तिरंगा फहरायेंगे और अपने देश के आनाज को आजाद कर, भूखे नंगे देशवासियों मे बाँट देंगे। आज हम सब मिलकर स्टेशन पर विदेशी वस्त्रों की होली जलायेंगे। भारत माता की … जय।” सारी जनता उत्साह से जयनाद कर उठी। लाठी डंडे लिए लगभग पांच हजार से अधिक लोगों का जन सैलाब स्टेशन की ओर बढ़ चला। 

                  आंदोलन सागर के ज्वार की तरह उमड़ता हुआ नन्दगंज स्टेशन पर चला गया। डोमा लोहार और उनकी टीम छिन्नी और हथोड़े से मालगाड़ी के तालों को तोड़ने लगी। कुछ युवा क्रांतिकारी स्टेशन की इमारत पर चढ़ गये और उसपर तिरंगा झंडा फहरा दिया। मालगाड़ी पर भी तिरंगा फहराने लगा। इस मालगाड़ी में लंकाशायर की मिलों मे बने विदेशी वस्त्र, आनाज की बोरियां, ब्रिटिश फौज के लिए खाद्य सामग्री, मांस के बंद पैकेट और सेना के लिए टेंट वर्दी इत्यादि सामान लदा था। क्रांतिकारियों ने मालगाड़ी के एक एक डिब्बे को लूटना और लुटाना शुरू कर दिया। इसी बीच पुलिस सुपरिटेंडेंट मि. मेज़ के नेतृत्व मे संगीनों से सुसज्जित पुलिस की एक सशस्त्र टुकड़ी ने पश्चिमी रेलवे क्रासिंग गेट से मोर्चाबंदी कर आंदोलनकारियों पर अंधाधुन गोलियां चलाना आरम्भ कर दिया। गोलियां दनादन चलाने लगीं और जनता अपने लाशों पर आगे बढती गयी। छणभर में पचासों जनवीर पृथ्वी पर लोटने लगे। भारत माता का आँचल शहीदों के रक्त से लाल हो गया। पुलिस के पास जबतक गोलियां रही वह नरसंहार करती रही। इस भीषण गोलीबारी के बावजूद क्रांतिवीर मैदान में डेटे रहे। मालगाड़ी के डिब्बों में आग लगा दी गयी। विद्रोहियों ने विदेशी वस्त्र लूटकर नष्ट कर दिया। जनता ने इस मोर्चाबंदी को तोड़ने का निश्चय किया। अबतक पुलिस की गोलियां भी समाप्त हो चली थीं; अतः वे सब गोलियां चलाते हुए पीछे हटने लगे। एकबार पुनः जनता की लाठियों के भय से फिरंगियों की पुलिस भाग खड़ी हुई। आंदोलनकारियों ने लगभग पूरी मालगाड़ी को अग्निदेवता को समर्पित कर दिया और रेलवे स्टेशन को विधिवत नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। काम समाप्त करके जनता बड़ी बहादुरी से अपने साथियों की लाशों को अपने कन्धे पर उठाकर वहां से हटने लगी। बहुत से लोग घटनास्थल पर ही वीरगति को प्राप्त हो गये और गोली से आहत बहुत से लोग रास्ते मे अपना प्राण छोड़ दिये। इस प्रकार स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपने रक्त से नया अध्याय लिख दिया। 

                    सन् 42 के अगस्त क्रान्ति के दौरान नन्दगंज स्टेशन पर गाजीपुर जिला में सबसे अधिक खून बहा। सामान्यतः समाज के प्रत्येक वर्ग के लोगों ने इन आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाई। देश की समस्त जनता फ़िरंगी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए प्रतिबद्ध थी। पुनश्च नन्दगंज स्टेशन पर बलिदान देने वालों मे निकटवर्ती गांवों के अहीरों की संख्या बहुत अधिक थी। अगस्त क्रांति के पश्चात, दमन का दौर चलने पर त्रस्त जनता ने अपने क्रांतिकारी भाइयों का नाम व्यक्त नहीं किया और शनैःशनैः लोग उन्हें भूल गये। गांव जावर के पुरनियों के अनुसार लगभग 100 से 150 राउंड गोलियां चलाई गईं और लगभग सौ से अधिक लोग मारे गये। इस घटना में अनुमानतः लगभग हजार लोग घायल हुए थे। 15 अगस्त को क्रांतिकारियों ने नन्दगंज स्टेशन पर एक बार पुनः काकोरी कांड को अंजाम दिया। जनता ने दिन दहाड़े स्टेशन पर हमला कर दिया और मालगाड़ी का सारा सामान लूटकर नष्ट कर दिया। फ़िरंगी सरकार ने भी इस आंदोलन का अत्यंत बर्बरतापूर्ण दमन किया। पुलिस अधीक्षक मि. मेज़ ने बहुत निकट से जनता पर गोलियां चलवाई। अगस्त क्रांति की यह रक्तिम स्याह घटना आज भी यहाँ के लोगों के स्मृतियों को पीड़ित करती हैं। आज़ादी की लड़ाई से भी अधिक पीड़ादायक यह हैं कि आज की  नई पीढ़ी अपने पुरखों के त्याग और बलिदान को भूलती जा रही हैं। ... ... ...

अस्तु !!



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