मधु - माधव में पवन सु-मन्द ,
लेकर चला मधुप मकरन्द ।
मदन मद मत्त, मृदुल मन छन्द
हृदय भी मचल रहा स्वछन्द ॥
भ्रमर के गुँजन का संगीत
बढ़ाता हृदय - हृदय का प्रीत ।
जगत की अनुपम न्यारी रीति
मदन का रति पर अतिशय प्रीत ॥
झुके तरु - डाल की लिपटै बेल ,
जगत जड़ - चेतन बीच सुमेल ।
जलधि स्रोतस्विनी करते खेल ,
मृदुल से खारे जल का मेल ॥
उषा का प्राची मे आभास ,
निलय के अभ्र हुए अरुणाभ ।
चहकते चटका - चटकी चित्त
चितेरा चित्रित करता वृत्त ॥
क्षितिज पर अर्धवृत्त परिवृत्त
प्रकिर्णन - किर्णन मय यह कृत्त ।
कुमुद कुल कोश करें संवृत्त
कमल के कोश हुए विवृत्त ॥
मिलावे मलयानिल दो डाल
झूमते वृक्ष लिये जयमाल ।
तिलक 'रवि' का प्राची के भाल
नदी सिर शोभे सिंदूर लाल ॥
होता पर्वत पर हिमपात
गिरता स्व चरणों में प्रपात ।
पतन का उसे अधिक संताप
की धोने वसुधा का परिताप ॥
नदी कल - कल बहती दिन-रात
सलिल शीतल सिंचित तृण -पात ।
बीत गई हिम तम की रात
ऋतु - वसंत का यह सुप्रभात ॥
~ रविशंकर मिश्र :
( यह कविता ‘वसंत प्रभात’ दो वर्ष पूर्व लिखी गई थी | यह कविता श्रृंगार रस और श्रृंगार छंद में प्राकृतिक प्रेम का श्रृंगारिक वर्णन प्रस्तुत कराती हैं | )
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