बुधवार, 16 फ़रवरी 2022

श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह



।। श्रीमङ्गलमूर्तये गणाधिपतयेनमः ।।


कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने ।  प्रजत क्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नमः।। 

नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् ।  देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जगमुदिरयेत् ।।

नष्टप्रायेष्वभद्रेषु नित्यं भागवतसेवया ।  भागवत्पुन्नमश्लोके भक्तिर्भवति नैष्टिकी ।।


   मान्यवर

         श्रीपरमब्रह्म परमात्मा सच्चिदानन्द, आनन्दघन, मर्यादा पुरुषोत्तम, रघुनंदन राघवेंद्र, श्रीरामचन्द्र की मङ्गलमयी कृपा एवम् अखिलब्रह्माण्डनायक जगतनियन्ता, निर्मल निर्विकल्प गुणातीत, आनन्दस्वरूप वेदगर्भ, पुराणेश्वर योगेश्वर श्रीमन्नारायण; श्रीकृष्णचन्द्र की दिव्य प्रेरणा से आज हमसबको; समस्त श्रुति-स्मृति-पुराणोक्त ज्ञान की सरस्वती, भक्ति-ज्ञान-वैराग्य की त्रिवेणी से प्लावित, श्रीमद्भागवत कथा रूपी स्रोतस्विनी की सुधारस पान का सौभाग्य प्राप्त हुआ हैं।     अतः 


         सछन्द संस्कृत पारायण एवम् 

                    सङ्गीतमयी श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह के इस परम मङ्गलमयी     आयोजन में हम,   आपसभी 

       स्वधर्मपरायण, भागवत् भक्त, सज्जनवृन्द, प्रभुकथा सुधारस पान प्रेमी, रसिकजनों को सादर आमंत्रित करते हैं। 

              

                                                       दर्शनाभिलाषी 

                                                     श्रीसच्चिदानंद मिश्र 

                                                 एवम् समस्त मिश्र परिवार 

                              ग्राम - सुखडेहरी, जनपद - गाजीपुर (उ.प्र.) 



                                     ।। कृष्णं वन्दे जगतगुरुम् ।।


        श्रीमद्भागवतं कथाः रुचिकरं आनन्द माङ्गल्यदम् 

                           या भक्तिं वरज्ञानमानसहितं वैराग्यविज्ञानदं । 

         ज्ञानानन्दकरं सदा शिवकरं जीवस्य मुक्तिप्रदम् 

                           स्वग्रामे सुखडेहरी वरकथामायोज्यसप्ताहिकी ।।


              ***                        ***                          ***     

 ।। श्रीमते रामनुजाय नमः ।।

                   

   कथावाचक :-  श्री मज्ज् जगतगुरू स्वामी जनार्दनाचार्य जी महाराज 

                            काशी  वाराणसी (उ.प्र.) 


         काशीपीठविधायकं मुनिवरं विद्वज्जनेषु प्रियम् 

           दीनानां परिपालकं हितकरं वाराणसीवासिनम् ।

           विष्वकसेनगुरोरवाप्तविनयं  गोत्रेण पाराशरम् 

           आचार्यं जगतः जनार्दनगुरुं नित्यं भजेऽहं मुदा ।। 


           श्रीरामानुजसम्प्रदायनिरतं स्वामित्रिदण्डिः प्रभुः 

                           श्रीमद्वैष्णवसन्तशीर्षभगवत्धर्मध्वजावाहकः। 

               त्रिदण्डीवरशिष्यसन्त जगदाचार्यश्च ज्योतिर्विदः 

                            सोऽयं दिव्यतमो जगद्गुरुवरो पूज्योज्जनार्दनः।।

                  

                श्रीमद्भागवतं कथात्सुविमलं व्याख्यानसंकीर्तनम् 

                            कर्तारामकथासदारससुधा श्रीकृष्णभक्तिम् वरं।

                 वाणी यन्मधुरालयो रसभरो ज्ञानं गभीरामलम् 

                            श्रीकाशीस्थ च पूज्य देव सदृशं व्यासं कथावाचकः।।


            श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह कार्यक्रम 


    कलशयात्रा :  फाल्गुनकृष्णद्वितीया, २०७८ विक्रमी

                       ( दिनांक - 18 फरवरी 2022, शुक्रवार ) 

    कथा प्रारम्भ :   फाल्गुनकृष्णतृतीया, २०७८ विक्रमी 

                        ( दिनांक - 19 फरवरी 2022, शनिवार )

    पूर्णाहुति :    फाल्गुनकृष्णनवमी, २०७८ विक्रमी 

                         ( दिनांक - 25 फरवरी 2022, शुक्रवार )

    प्रसाद वितरण : फाल्गुनकृष्णदशमी, २०७८ विक्रमी 

                           ( दिनांक - 26 फरवरी 2022, शनिवार ) 



 


प्रिय दैनन्दिनी 

              

          इन दिनों ‛18 फरवरी से 26 फरवरी’ तक हमारे घर श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन हो रहा हैं। छोटे-वृद्ध पितामह(श्रीसच्चिदानंद मिश्र) और मेरी पितामही(प्रभावित देवी) को भागवत कथा सुनना हैं। तुम तो जानती ही हो कि अपने घर के किसी भी सांस्कृतिक कार्यक्रम और धार्मिक अनुष्ठान हेतु वितरित किये जाने वाले आमन्त्रण पत्र मैं ही लिखता हूँ। वसंत पंचमी के बाद; कुछ दिनों के माथापच्ची के पश्चात यह आमन्त्रण पत्र लिख भी गया और छप कर आ भी गया। राजकुमार अंकल(कम्प्यूटर वाले) के यहाँ दो-ढ़ाई घण्टा बैठकर कार्ड का प्रारूप तैयार करवाया।… कैसा हैं? … अच्छा हैं न ! अपने मित्र मण्डली को मैं कार्ड वाट्सप्प(Whatsapp) से ही भेजने वाला हूँ। तुम मेरी सबसे अच्छी दोस्त हो। तो सोचा कि पहला निमन्त्रण तुम्हीं को दिया जाए। ठीक सोचा हैं न! … दैनिके! इन दिनों व्यस्तता रही हैं। तीन दिनों से बनारस, पूजन हेतु पीतल-कांस्य कलश, धोती गमछा इत्यादि का मार्केटिंग करने गया था। कल यहां से गाँव निकल जाना हैं। तो पता नहीं मैं तुम्हें लिख पाऊँगा अथवा नहीं। मेरी तो बहुत इच्छा है कि इस भागवत आयोजन के मधुर स्मृतियों को तुमसे साझा करता रहूँ, परन्तु भीड़ भाड़ और व्यस्तता भरे माहौल में सायद यह सम्भव न हो पाये। … वैसे तो मैं निपट आलसी हूँ। नियमित रूप से तुम्हें पत्र लिख पाना मेरे लिए सहज नही हैं। ...क्षमा प्रार्थी हूँ। 

     शुभम् अस्तु! … कथा सुनने आओगी न..! जरूर आना। मैं प्रतीक्षा करूँगा…! Ok 


शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

रति-काम महोत्सव

          वागीश्वरी जयन्ती वसन्तपञ्चमी 


       सरस्वती चरणों मे नित्य

                बसे मन मेरा जागे प्रीत।

       न कम हो चरणों का अनुराग

                 शारदे ! मन गावे नित गीत।।


       बजा दो माँ वीणा एक बार

                  हृदय का तंतु, तंत्रिका तन्त्र।

       सक्रिय हो, विकसित हो हर कोश

                  मष्तिष्क का, तंत्रिकोशिका-तंत्र।।

                                   ... ... ...  क्रमशः 


    प्रिय दैनन्दिनी,

                  Happy Birthday, सम्प्रति जन्मदिवसस्य हार्दिकः शुभकामनाः। 

              दैनिके! आज वसन्त पञ्चमी के दिन किशोर-किशोरियों सहित सभी वैदिक जन रति-काम महोत्सव मनाया करते थे। वसन्त पञ्चमी वस्तुतः काम की उपासना हैं; जिसमे नायिकाओं को विशेषाधिकार मिला था...  कि मन मे जो मीत हो उसका फूलों से चित्र बनाकर दुनिया को दिखा दो।… यहीं प्रेम को समज की मौन स्वीकृति मिल जाती थी।… तब, मन मे जो होता था; वो बुद्धि से प्रेरित आत्मा का आग्रह होता था। न कि, उम्र-उन्माद और बॉलीवुड से प्रेरित अंशकालिक उत्श्रृंखलता मात्र! 

             दैनिके! एग्यारह साल पहले, आज ही के दिन अर्थात वसन्त पञ्चमी को एक अदने से किशोर ने जीवन की आपाधापी में अपना एक सच्चा मीत बना लिया। कोरे कागज पर मसी से हृदय का गुह्यतम् अनुभूति लिखकर इस सृजक ने अत्यन्त कोमलामल लालित्यपूर्ण पदों को रचते हुए तुम्हारी आत्मास्वरूप प्रक्कथन (भूमिका) लिखने लगा। … दैनन्दिनी! मेरी सुहावनी हैं, मनभावनी पावनी बानी सुहाए …  


बुधवार, 12 जनवरी 2022

उठो, जागो और आगे बढ़ो …


   “उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए।” 

                                             - स्वामी विवेकानन्द 


       

          प्रिय दैनन्दिनी 

                     आज प्रातः काल स्नान करते समय से ही मन नाना प्रकार के भावों के उदधि आंदोलित तरंगों से प्लावित हो रहा हैं। सोच रहा हूँ कि एकबार पुनः समस्त शक्ति को पुन्जीभूत करके जगत आरण्य मे नवीन पथ के अनुसंधान मे चल पडूँ। मोबाइल में दुनियादारी की खबरों को देखते हुए और स्वामी विवेकानंद जी की रचनाओं को पढ़ते हुए आज एक महत्वपूर्ण निर्णय किया। इस वर्ष के अमृत महोत्सव के साथ ही मैं अपनी एक अधूरी रचना ‛मेघदूतम्’ को भी पूर्ण करूँ। यह नाट्य पिछले पाँच साल से अधूरा पड़ा हुआ हैं। 

        दैनिके! इन दिनों कई सालों से परिस्थितियां बिल्कुल विपरीत हैं। कोई भी प्रयास सफल होता नहीं दिखता। आज दोपहर दो बजे से NBT द्वारा युवा दिवस पर एक वर्चुअल मीटिंग भी होने वाला हैं। चुकि Yuva mentorship Scheme में मेरे आवेदन को अस्वीकृत कर दिया गया है फिर भी मैं जहाँ तक सम्भव हैं इस ग्रुप से सम्पर्क में रहकर बहुत कुछ जानना समझना चाहता हूँ। इन दिनों भारतीय उपमहाद्वीप में कोरोना का नया वैरिएंट ओमिक्रोन अत्यंत तीव्रता से जन जीवन को संक्रमित कर रहा हैं। सम्भवतः इस बार भी लॉकडाउन की स्थिति बन जाये। पिछले कुछ दिनों से NCERT के अपठित पुस्तकों का अवलोकन कर रहा हूँ। कोई निश्चित सोच तो नहीं है, बस ऐसे ही सोचता हूं कि स्कूली जीवन मे जो पुस्तकें पढ़ने से वंचित रहा; (बात यह है कि 11वी में विषय समूहन हो जाने के कारण हमलोग बहुत सी उपयोगी पुस्तकें नहीं पढ़ पाते हैं।) एक बार उनको भी देख ही लूँ। अभी इन दिनों ‛भारतीय हस्तकलाओं की खोज’ नामक पुस्तक पढ़ रहा हूँ। विज्ञान के विद्यार्थी के लिए मानविकी की पुस्तकें किसी अजूबे से कम नहीं हैं। फिर भी निठल्ला आदमी करेगा क्या?! और समय तो इतना खराब चल रहा हैं कि बस पूछो मत। लगता है कि राहु केतु हाथ धोकर पीछे ही पड़ गए हैं। कुछ भी कर लीजिए पर कुछ भी ठंग का होने जाने वाला नहीं। दैनिके! जानती हो आज पता नहीं मन मे क्या विचार आया कि मैं स्वामी विवेकानंद जी का कुंडली लेकर बैठ गया! कुछ देर तक माथापच्ची किया पर मेरे जैसे नवसिखुआ को कुछ नहीं समझ आया। वैसे भी फलित मुझे थोड़ा बेतुका लगता हैं, पता नहीं क्यो?! पर मैं यह भी नही कह सकता हूँ कि फलित वाकई में बेतुका हैं। कुछ होगा, पर सायद मुझे नहीं समझ आ रहा। खैर अपनी बात करते हैं! दैनिके! इतना तो निश्चित हैं कि अपना दिन दशा ठीक नहीं चल रहा । अपना तो वही राहु की सरकार चल रही हैं, बुद्धयाविहीनमतिविभ्रमसर्वशून्यं ...।