इयं विसृष्टिर्यत आबभूव यदि वा दधे यदि वा न।
यो अस्याध्यक्ष: परमे व्योमन्त्सो अंग वेद यदि वा न वेद।।
(ऋग्वेद,मण्डयल10, सूक्तग129,मंत्र 7)
विशुद्ध प्राकृतिक, मार्जनी स्वभाव वाली प्रकाशनगरी काशी में आनन्द स्वरूप महादेव, त्रयताप सहने की प्रेरणा हेतु भक्तों को समयानुकूल आनन्द प्रदान करते रहते हैं | तभी तो इसे आनंदवन कहते हैं | काशी में प्रायिकता (संजोग) विश्वनाथ की प्रधान इच्छा होती है | तभी तो कहते है, “यहाँ बाबा के इच्छा से ही बाबा का दर्शन मिल सकता है |”
दशाश्वमेध (रुद्रसरोवर की भूमि) पर चंचल गंगा की लहरों में प्रतिबिंबित आरती-मलिका दर्शन की इच्छा बाबा की सप्तर्षि-आरती तक खींच लाएगी, किसे पता था ! गंगा आरती आरंभ के शंखध्वनि के साथ ही हम मित्रों का मन अनायास ही बाबा विश्वनाथ के दर्शन की अभिलासा से आंदोलित होने लगा | हम काशी की विसर्पी गलियों से होते हुए बाबा के पास चल पड़े | मंदिर पहुँचे तो आरती हेतु प्रबंधन किया जा रहा था |
वैशाख शुक्ल प्रतिपदा आरंभ के साथ ही, प्रथमतः महादेव की दिव्य सप्तर्षि-आरती देखकर मन आनन्दित एवं जन्मोत्सव धन्य हो गया | काशी निवास के इस सातवें वर्ष में, सप्तर्षि-आरती में अर्पण हेतु मात्र सात सिक्कों ने तो सात संख्या का एक मनोरंजक संजोग बना दिया ! बस!!! हम मित्रों की संख्या पांच थी, … मैं, शक्ति, कनिष्क, भास्कर और शुभम् | गर्भगृह के द्वार पर से मैंने आरती-क्रिया का आद्योपान्त प्रेक्षण किया | परन्तु काफी प्रयास के बाद भी आरतीगायन के शब्दों को किंचित भी नहीं समझ पाया | स्यात् यह दक्षिणभारतीय भाषा में था | बाबा का मनोरम श्रृंगार और अर्चकों द्वारा आरती दोलनों को देखना और लयबद्ध घण्टियों का सुमधुर ध्वनि अत्यंत मनमोहक लगा | अंत में गर्भगृह में बाबा के समक्ष आरती लेना और अर्चक से शिवार्पित मंदारपुष्प माला प्राप्त करना सदैव अविस्मरणीय रहेगा |
[ यह मेरा पहला सप्तर्षि-आरती दर्शन और शक्ति का प्रथम विश्वनाथ दर्शन था | बुधवार का सांध्यकालीन विवरण, वैशाख शुक्ल की प्रतिपदा अपने जन्मदिन पर विश्वनाथजी की कृपा से सप्तर्षि-आरती दर्शन | ]
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