‘प्रेम अगिनी’ में उदाशीनता के कारण अब ‘सम्मत’ विलुप्त होने के कगार पर है | धीरे - धीरे पुरानी पीढ़ी गुजरती जा रही है और नयी पीढ़ी को इस प्रेम अगिनी में किंचित भी रूचि नहीं है | आधुनिकता के दौड़ ने तो मनुष्य का परम्परागत ज्ञान व पारम्परिक सम्बंधो से ऐसा विच्छेदन कर दिया है कि, यह प्रेम अगिनी धुँधुआने सी लगी है | गाँव के बड़े-बुजुर्ग प्रेम अगिनी धधकाने की कला नवहों को सीखना चाहते है ; और नवहे इसे स्मॉर्टफोन मे रिकॉर्ड करने और सेल्फियाने में लगे हैं | अब वह दिन दूर नहीं जब ये फाग, रिमिक्स होकर डी.जे. पर बजेंगे |
- लोभी हो नयना
केकरा सगे खेलब फाग |
केकरा सगे खेलबी फाग ||
एह पार की लाकड़ी हो
ओह पार की आग ; ललना ...
ओह पार की आग |
प्रेम अगिनि धधकाई के हो ,
सम्मत देहू जराय ; ललना ...
लोभी हो नयना ....
केकरा सगे खेलबी , फाग ?
हा हा ...
चोलिया हमरो धूमिल भई हो
चोलिया हमरो धूमिल भइ हो |
गोपी को ललचाय ; ललना ...
केकरा सगे खेलब फाग ?
कैसो निठुर मनमोहना हो !
कैसो निठुर मनमोहना हो !
मोही रहे टरकाय; ललना…
लोभी हो नयना
केकरा सगें खेलबी; फाग ?- होलिका जरी जाय, होलिका जरी जायरहली कंस के फूआ |होलिका जरी जाय, होलिका जरी जायरहली कंस के फूआ |गोकुला में हरि होलिका के मरलगोकुला में हरि होलिका के मरल |घर घर पाकल पूआअरे, घर घर पाकल पूआ ; हरि !रहली कंस के फूआ |होलिका जरी जाय, होलिका जरी जायरहली कंस के फूआ |करईल की प्यारी धरती पर एक सुखडेहरी गाँव है ; जो अपनी संस्कृति के समन्वयन-संरक्षण हेतु इस आधुनिक युग में भी संघर्षरत है |
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